RBI की रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया है कि भारत एशिया में मिलेट्स(Millets) उत्पादन में लगभग 80% और वैश्विक मिलेट्स उत्पादन में 20% का योगदान करता है,
लेकिन इसका उत्पादन क्षेत्र एवं उत्पादन पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहा है।
मिलेट्स(Millets) उत्पादन स्थिर रहने के लिए जिम्मेदार कारण:
श्रम की कमी और उर्वरक के कम उपयोग के कारण उपज में अंतर (Yield gap) मौजूद है।
यील्ड गैप से आशय है उत्पादन की क्षमता और वास्तविक उत्पादन में अंतर।
उपभोक्ताओं की खानपान संबंधी पसंद में बदलाव आया है। साथ ही, न्यूनतम समर्थन मूल्य योजनाओं के तहत चावल, गेहूं जैसे खाद्यान्नों की खरीद से भी मिलेट्स का उपभोग प्रभावित हुआ है।
मिलेट्स की शेल्फ लाइफ अपेक्षाकृत कम है यानी ये फसलें जल्दी खराब होने लगती हैं।
इसलिए, इन्हें तुरंत भंडारण की जरूरत पड़ती है। भारत में अनाज भंडारण की बड़ी समस्या रही है।
मिलेट्स (Millets/श्री अन्न) के बारे में:
मिलेट्स खरीफ फसल है।
ये छोटी व गोल बीज वाली वार्षिक घासों के सामूहिक समूह हैं। ये वनस्पति प्रजाति “पोएसी (Poaceae)” से संबंधित हैं।
मिलेट्स को पोषक अनाज के रूप में भी जाना जाता है।
इनमें प्रमुख मोटा अनाज मिलेट्स (ज्वार, बाजरा आदि) और गौण मिलेट्स (कंगनी / फॉक्सटेल, कोदो आदि) शामिल हैं।इनमें सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
इनमें 7-12% प्रोटीन, 2-5% वसा, 65-75% कार्बोहाइड्रेट्स और 15-20% आहारीय फाइबर होते हैं।
2022 में भारत की मिलेट्स उत्पादकता चीन, इथियोपिया और रूस से कम थी।
ज्वार इसका अपवाद है, जिसकी उत्पादकता अधिक रही है।
भारत के प्रमुख मोटा अनाज मिलेट्स उत्पादक राज्य राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि हैं।
मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहलें:
वर्ष 2018 को राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया था।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत भारत में मिलेट्स के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने का लक्ष्य भी रखा गया है।
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजनाओं के तहत सप्ताह में कम-से-कम एक बार मिलेट्स परोसना अनिवार्य किया गया है।
इसे गर्म पका हुआ भोजन योजना में भी उचित रूप से एकीकृत किया गया है।
मिलेट्स(Millets) के लाभ:
स्वास्थ्य:
आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत हैं।
इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स निम्न है (निम्न ग्लाइसेमिक इंडेक्स मधुमेह को रोकने के लिए अच्छा माना जाता है)
ये ग्लूटेन-मुक्त होते हैं(इस गुण के कारण ये सीलिएक रोग के मरीजों के लिए फायदेमंद है)
ये फसलें एनीमिया, हृदय रोग से लड़ने और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करती हैं।
आर्थिक सुरक्षा:
ये फसलें किसानों के लिए आय का स्थायी श्रोत हैं।
उत्पादन के लिए अधिक खर्च की आवश्यकता नहीं है।
पर्यावरण:
ये फसले कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद करती हैं।
इन फसलों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, ये सूखा सहिष्णु और संधारणीय फसलें हैं।
इन फसलों के विकास के लिए कम उर्वरक और कम कीटनाशकों की आवश्यकता पड़ती है।
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