त्रियंबक (third eye)किसे कहते हैं :
जिन्हें हम शिव कहते हैं वे और कुछ नहीं बल्कि परम बोध का मूर्तरूप है. शिव को हमेशा त्रियंबक कहा जाता है, क्योंकि उनके पास तीसरी आंख(third eye)है.
तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी का माथा फटा और कुछ निकल आया! इसका मतलब बस यह है कि बोध का एक और आयाम खुल गया है।
प्रत्येक चंद्र माह में अमावस्या से पहले की रात को शिवरात्रि कहा जाता है.
एक कैलेंडर वर्ष में होने वाली बारह शिवरात्रियों में से,
जो शिवरात्रि फरवरी-मार्च में आती है, उसे महाशिवरात्रि(Maha Shivratri) कहा जाता है क्योंकि यह बारह शिवरात्रियों में सबसे शक्तिशाली है।
इस परंपरा में, महाशिवरात्रि का महत्व कई तरह से देखा जाता है. जो लोग पारिवारिक स्थितियों में हैं,
उनके लिए महाशिवरात्रि को शिव की शादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है.
महत्वाकांक्षी लोगों के लिए, यह वह दिन है जब शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की.
तपस्वियों के लिए, यह वह दिन है जब वह कैलाश के साथ एक हो गए – वह एक पर्वत की तरह बन गए, बिल्कुल निश्चल.
सहस्राब्दियों तक ध्यान में रहने के बाद,
एक दिन, उनमें सारी हलचल बंद हो गई और वे पूरी तरह से निश्चल हो गए.
रीढ़ सीधी रखें:
तो, तपस्वी महाशिवरात्रि को निश्चलता के दिन के रूप में देखते हैं।
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो महाशिवरात्रि का महत्व यह है कि इस दिन,
विशेष रूप से धरती के उत्तरी गोलार्ध में ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि मानव तंत्र में ऊर्जा का स्वाभाविक उछाल होता है.
इस उछाल का उपयोग करने के लिए ही हमने इस परंपरा में रात भर चलने वाले इस उत्सव की स्थापना की.
रात भर चलने वाले इस उत्सव का मूल कारण यह सुनिश्चित करना है कि आप जागते रहें और,
अपनी रीढ़ सीधी रखें ताकि ऊर्जा के इस स्वाभाविक उछाल को अपना रास्ता मिल सके.
यदि आप महाशिवरात्रि पर, जब ऊर्जाएं ऊपर की ओर बढ़ने की कोशिश कर रही हों, लेट जाते हैं तो आप उन्हें बाधित कर रहे होंगे।