NAM द्वारा अमेरिका की ‘स्टेट स्पॉन्सर्स ऑफ टेररिज्म’ की एकपक्षीय सूची में वे देश शामिल हैं, जो कथित तौर पर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को प्रायोजित कर रहे हैं।
ऐसी सूची में शामिल देशों को अमेरिका द्वारा लागू एकतरफा आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
क्यूबा के अलावा उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया भी इस सूची में शामिल हैं।
क्यूबा के पक्ष में NAM का रुख ग्लोबल साउथ के देशों के लिए इसके महत्त्व को दर्शाता है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उत्पत्ति 1955 के एशिया-अफ्रीका सम्मेलन से मानी जाती है।
यह सम्मेलन बांडुंग (इंडोनेशिया) में आयोजित हुआ था। NAM का पहला सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड (वर्तमान सर्बिया) में आयोजित किया गया था।
ज्ञातव्य है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध शुरू हो गया था।
इस दौरान विश्व के कई देश अमेरिका व सोवियत संघ के नेतृत्व में अलग-अलग गुटों में बंट गए थे।
हालांकि, ‘भारत जैसे कुछ नव स्वर्तन देशों ने किसी भी गुट में शामिल न होने का निश्चय किया।
तब इन देशों ने मिलकर NAM की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था स्थापित करना था।
ग्लोबल साउथ के लिए NAM की वर्तमान प्रासंगिकता:
सामूहिक अभिव्यक्तिः
उल्लेखनीय है कि NAM के सभी 120 सदस्य ग्लोबल साउथ से हैं।
इस तरह यह मंच अलग-अलग मुद्दों पर इन देशों की आवाज के रूप में कार्य करता है।
नई शक्ति प्रतिस्पर्धा का विकल्पः
रूस-यूक्रेन युद्ध ने शीत युद्ध जैसी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है।
इससे ग्लोबल साउथ के लिए गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं।
यथार्थवादी शासन पद्धति पर बल देता है:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन सदस्यों को निर्णय लेने में स्वायत्तता और अपने देश के सर्वोत्तम हितों में कार्य करने के लिए लचीलापन प्रदान करता है।
आसियान, ब्रिक्स, अफ्रीकी संघ और G77 जैसे समूह NAM सदस्यों के प्रभुत्व वाले समूह हैं।
ऐसे समूहों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के कुछ एजेंडे अपनाए हैं, जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की मांग करना आदि।
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