पहली बार, किसी पारिस्थितिकी तंत्र(Mangrove Ecosystem) समूह का पूर्णतया “IUCN-रेड लिस्ट ऑफ़ इकोसिस्टम (RLE)” का इस्तेमाल करके मूल्यांकन किया गया है।
IUCN का रेड लिस्ट ऑफ़ इकोसिस्टम, पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को मापने, खतरे के स्तर का आकलन करने और सबसे प्रभावी प्रबंधन उपायों की पहचान करने के लिए एक वैश्विक मानक है।
इस वैश्विक मैंग्रोव मूल्यांकन (Mangrove Ecosystem.) के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
मूल्यांकन किए गए मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों में से 50 प्रतिशत विलुप्त होने की कगार पर हैं। लगभग 20% उच्च जोखिम का सामना कर रहे है
उच्च जोखिम में एनडेंजर्ड या क्रिटिकली एनडेंजर्ड के रूप में वर्गीकृत तंत्र शामिल हैं।
मैंग्रोव को खतराः जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अविवेकपूर्ण विकास, प्रदूषण और बांध निर्माण प्रमुख खतरे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण मूल्यांकन किए गए लगभग 33 प्रतिशत मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में हैं।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण, अगले 50 वर्षों में वैश्विक मैंग्रोव क्षेत्र का 25% जलमग्र होने का अनुमान है।
यदि 2050 तक संरक्षण के लिए उपाय नहीं किए गए तो, जलवायु परिवर्तन और समुद्री जलस्तर में वृद्धि की वजह से लगभग 1.8 बिलियन टन कार्बन भंडारित करने वाले सिंक लुप्त हो जाएंगे। साथ ही, 2.1 मिलियन लोगों को तटीय बाढ़ के प्रकोप का सामना करना पड़ सकता है।
IUCN रेड लिस्ट में भारतीय मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र(Mangrove Ecosystem.) का वर्गीकरणः
अंडमान और बंगाल की खाड़ी के मैंग्रोवः लीस्ट कंसर्न;
दक्षिण भारत के मैंग्रोवः क्रिटिकली एनडेंजर्ड; तथा
पश्चिम भारत के मैंग्रोवः वल्नरेबल ।
मैंग्रोव का महत्त्वः
मैंग्रोव वन मात्स्यिकी और जैव विविधता के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं और पारिस्थितिक समर्थन प्रदान करते हैं। मैंग्रोव वन कार्बन सिंक के रूप में काम करते हैं और यहां लगभग 11 बिलियन टन कार्बन भंडारित है।
जल प्रदूषकों को हटाकर और तलछटों को रोककर जल की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
तटीय क्षेत्रों को बाढ़, चक्रवाती तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाते हैं।
मैंग्रोव संरक्षण के लिए पहलें:
वैश्विक पहलें:
मैंग्रोव ब्रेकथ्रूः इसे यूएन-हाई लेवल क्लाइमेट चैंपियंस और ग्लोबल मैंग्रोव एलायंस (GMA) ने UNFCCC के CoP-27 में लॉन्च किया था।
ग्लोबल मैंग्रोव एलायंस को 2018 में विश्व महासागर शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेटः इसे संयुक्त अरब अमीरात ने इंडोनेशिया के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
भारत की पहलेंः
मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैजिबल इनकम (मिष्टी / MISHTI) योजना शुरू की गई है।
राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के तहत मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों का संरक्षण एवं प्रबंधन पहल शुरू की गई है।