कुष्ठ रोग के लिए नई उपचार पद्धति विकसित की गई। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने (Leprosy)कुष्ठ रोग के लिए नई उपचार पद्धति की घोषणा की है।
कुष्ठ रोग (हैन्सन रोग/Leprosy) के बारे में:
कारण:
यह एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है। यह माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक जीवाणु के कारण होता है।
प्रभावित अंग:
यह रोग मुख्य रूप से त्वचा, परिधीय तंत्रिकाओं, ऊपरी श्वसन पथ और आंखों की श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित करता है।
प्रसार का तरीका:
इस रोग का संक्रमण निकट और निरंतर संपर्क में रहने पर अनुपचारित रोगी के नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है।
उपचार:
इसका उपचार बहुऔषधि उपचार से किया जा सकता है।
वर्गीकरण:
उपचार की दृष्टि से कुष्ठ रोग के मामलों को दो श्रेणियों में बांटा गया है:
पॉसी-बैसिलरी (पीबी) मामलों में, रोगी के शरीर में लेफ्रे बैक्टीरिया की संख्या बहुत कम होती है।
ऐसे मामलों में बायोप्सी से रोग के आगे बढ़ने का स्पष्ट पता नहीं चलता।
मल्टी-बैसिलरी (एमबी) मामलों में, रोगी के शरीर में बैक्टीरिया की संख्या बहुत अधिक होती है।
इससे बायोप्सी में विकसित होने वाली बीमारी के पर्याप्त लक्षण दिखाई देते हैं।
नई उपचार पद्धति के बारे में:
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुष्ठ रोग के पॉसी-बैसिलरी (पीबी) मामलों के लिए छह महीने के लिए दो-दिवसीय के बजाय तीन-दिवसीय प्रणाली शुरू करने का फैसला किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित मल्टी-ड्रग थेरेपी (एमडीटी) में तीन दवाएं (डैप्सोन, रिफैम्पिसिन और क्लोफाज़िमाइन) शामिल हैं।
कुष्ठ रोग को नियंत्रित करने के लिए हाल ही में उठाए गए कदम:
कुष्ठ रोग(Leprosy) के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एनएसपी) और रोडमैप (2023-27):
इनका उद्देश्य 2027 तक कुष्ठ रोग के शून्य संचरण को प्राप्त करना है।
कुष्ठ रोग(Leprosy) उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम:
यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है। निकुष्ठ 2.0 पोर्टल: यह कुष्ठ मामलों के प्रबंधन के लिए है। एक एकीकृत पोर्टल है।
भारत में कुष्ठ रोग(Leprosy) की स्थिति पर एक नज़र:
भारत ने 2005 में कुष्ठ रोग को “सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या” के रूप में समाप्त करने का लक्ष्य हासिल किया। भारत द्वारा इस बीमारी के उन्मूलन की घोषणा डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुसार की गई थी।
डब्ल्यूएचओ का मानदंड है – राष्ट्रीय स्तर पर प्रति 10,000 जनसंख्या पर 1 मामले से भी कम।
राष्ट्रीय स्तर पर, व्यापकता दर 2014-15 में 0.69 प्रति 10,000 जनसंख्या की तुलना में 2021-22 में घटकर 0.45 प्रति 10,000 जनसंख्या हो गई थी।
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