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लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के पास पड़ने वाले कच्छतीवु द्वीप(Kachchatheevu Island) को लेकर राजनीति तेज़ हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने भारत की एकता को कमज़ोर किया।

उन्होंने एक्स पर लिखा- “आंख खोल देने वाली और हैरान करने वाली बात सामने आयी है. नए तथ्य बताते हैं कि कैसे कांग्रेस ने कच्छतीवु द्वीप(Kachchatheevu Island) श्रीलंका को दे दिया। 

इससे सभी भारतीयों में गुस्सा है और लोगों के दिमाग में फिर से ये बात साफ़ हो गई है कि वह कांग्रेस पर यकीन नहीं कर सकते।

. भारत की एकता को कमज़ोर करना, भारत के हितों को नुकसान पहुंचाना कांग्रेस के 75 साल के कामकाज का तरीका रहा है।”

नरेंद्र मोदी ने रविवार को मेरठ में हुई चुनावी रैली में कहा कि ये इंडिया गठबंधन के लोग देश की एकता को तोड़ते रहे हैं।

उन्होंने कहा- “आज ही कांग्रेस का एक और देश विरोधी कारनामा सामने आया है।

तमिलनाडु में समुद्री तट से कुछ किलोमीटर दूरी पर तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच में समुद्र में एक टापू है- कच्छतीवु. ये द्वीप सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है।

ये देश की आज़ादी के समय भारत के साथ था।

लेकिन चार-पांच दशक पहले इन लोगों ने कह दिया कि ये द्वीप फालतू है, ज़रूरी ही नहीं है। 

इस तरह इंडी अलायंस के गठबंधन के लोगों ने मां भारती का एक अंग काट दिया। ”

सबकुछ शुरू हुआ रविवार को टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के साथ. टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक आरटीआई के हवाले से रिपोर्ट छापी जिसमें ये दावा किया गया कि 1974 में भारत सरकार के ‘ढुलमुल रवैये’ के कारण ये द्वीप श्रीलंका के पास चला गया।

ये आरटीआई तमिलनाडु के बीजेपी चीफ़ के. अन्नामलाई ने दायर की थी जिसके जवाब में ये जानकारी सामने आयी।

सोमवार को भी ये मामला तूल पकड़ता गया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कच्छतीवु द्वीप(Kachchatheevu Island) पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा- “डीएमके और कांग्रेस ने ऐसे बर्ताव किया है कि सबकुछ अब केंद्र सरकार के हाथ में है और उन्होंने कुछ किया ही नहीं. जैसे ये सबकुछ अब हो रहा है और इसका कोई इतिहास नहीं है।

इस पर बात इसलिए हो रही है क्योंकि लोगों को जानना चाहिए कि ये विवाद शुरू कैसे हुआ।

इस द्वीप को लेकर संसद में कई बार सवाल पूछे गए हैं।”

“मैंने खुद 21 बार तमिलनाडु सरकार को जवाब दिया है। जून 1974 में विदेश सचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि के बीच बात हुई।

कच्छतीवु पर भारत और श्रीलंका के अपने अपने दावे हैं।”

“तमिलनाडु कहता है कि ये राजा रामनाथ की रियासत थी। भारत का कहना है कि ऐसा कोई भी दस्तावेज़ नहीं है जिससे ये दावा हो कि कच्छतीवु श्रीलंका का हिस्सा रहा है।

1960 के दौर से ये मुद्दा शुरू हुआ. 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ और मैरीटाइम सीमा दोनों देशों के बीच तय की गई।”

इस ख़बर(Kachchatheevu Island) को टाइम्स ऑफ इंडिया ने रविवार को प्रमुखता से छापा था।

अख़बार के मुताबिक़- दस्तावेज़ों से पता चलता है कि भारतीय तट से करीब 20 किलोमीटर दूर 1.9 वर्ग किलोमीटर भूमि पर भारत ने बाद में अपना दावा छोड़ दिया।

दशकों तक भारत इस टापू पर अपना दावा करता रहा लेकिन फिर इसे जाने दिया।

श्रीलंका, जो पहले सीलोन कहलाता था. उसने साल 1948 में आज़ादी के ठीक बाद इस द्वीप पर अपना दावा किया था।

तब उसने कहा कि भारतीय नौसेना (तब रॉयल इंडियन नेवी) उसकी अनुमति के बिना कच्छतीवु पर अभ्यास नहीं कर सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर, 1955 में सीलोन की एयर फोर्स ने इस द्वीप पर अभ्यास किया था।

अखबार कहता है कि 10 मई, 1961 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मुद्दे को अप्रासंगिक कहकर खारिज कर दिया था।

नेहरू ने लिखा था कि उन्हें इस द्वीप पर अपना दावा छोड़ने में कोई झिझक नहीं होगी।

अखबार के मुताबिक़ पीएम नेहरू ने लिखा कि वे इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते और इस पर अपना दावा छोड़ने में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं है।

उन्होंने तब कहा था कि वे अनिश्चित काल तक इस मुद्दे को लंबित रखने और संसद में दोबारा उठाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।

अखबार के मुताबिक़- नेहरू की ये बातें उस नोट का हिस्सा हैं, जिसे तत्कालीन राष्ट्रमंडल सचिव वाईडी गुंडेविया ने तैयार किया था।

इस नोट को विदेश मंत्रालय ने 1968 में संसद की अनौपचारिक सलाहकार समिति के साथ साझा किया था।

अख़बार के मुताबिक़, यह नोट भारत के उस रुख़ को दिखाता है कि वह कच्छतीवु(Kachchatheevu Island) के लिए कितना दृढ़ था।

हालांकि औपचारिक रूप से भारत ने इस द्वीप पर साल 1974 में अपना दावा छोड़ दिया था।

अख़बार के मुताबिक़ विदेश मंत्रालय का कहना था कि इस सवाल से जुड़े कानूनी पहलू बहुत जटिल हैं और इस पर विचार किया गया है।

मंत्रालय का कहना था कि द्वीप की संप्रभुता के दावे को लेकर साफतौर पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

अखबार के मुताबिक 1960 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय थी कि कच्छतीवु(Kachchatheevu

Island) पर भारत का मज़बूत दावा है।

उनका कहना था कि “यह मामला मुश्किल है लेकिन सबूतों के मूल्यांकन से ऐसा प्रतीत होता है कि द्वीप की संप्रभुता भारत के साथ है।”

इसके लिए उन्होंने ज़मींदारी से जुड़े अधिकारों का उदाहरण दिया था. उनका कहना था कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने रामनाथपुरम के राजा को टापू और उसके आसपास मछली पालन और अन्य संसाधनों के लिए ज़मींदारी अधिकार दिए थे।

ये अधिकार 1875 से लेकर 1948 तक चलते रहे लेकिन जब ज़मींदारी अधिकार खत्म हुए तो वे मद्रास राज्य में निहित हो गए।

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