Mon. Dec 23rd, 2024

• ICRA के अनुसार बैंकिंग क्षेलक द्वारा ऋण वितरण में कमी तथा ब्याज भुगतान और प्राप्ति में मार्जिन में गिरावट के कारण उनके लाभ में कमी आई है।

इन्हीं वजहों से बैंकिंग क्षेलक के आउटलुक को डाउनग्रेड किया गया है।

• क्रेडिट रेटिंग के तहत उधार लेने वाले व्यक्ति या संस्था की पूरी बकाया राशि (मूलधन व व्याज) और उसे समय पर भुगतान करने की क्षमता का आकलन किया जाता है।

• यह किसी विशिष्ट ऋण सुविधा या विशिष्ट प्रतिभूति से जुड़े ऋण जोखिम के बारे में भी सूचना प्रदान करती है।

• क्रेडिट रेटिंग का कार्य विशेष एजेंसियों द्वारा किया जाता है।

इन एजेंसियों को क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां (CRAs) कहा जाता है।

CRAs(ICRA) के बारे में:

• CRAS द्वारा प्रतिभूतियां जारी करने वाली कंपनियों या सरकारों की साख का आकलन करने के बाद उन्हें क्रेडिट रेटिंग प्रदान की जाती है।

इसके अलावा CRAS द्वारा बैंक ऋण, वाणिज्यिक पत्न (Commercial papers), सावधि जमा आदि के लिए भी रेटिंग प्रदान की जाती है।

• रेटिंग AAA (उच्चतम क्रेडिट रेटिंग) से लेकर D (डिफ़ॉल्ट) तक होती है।

• वर्तमान में सात CRAS भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI/ सेबी) में पंजीकृत हैं। ये 7 CRAs हैं:

1.एक्यूट,

2.क्रिसिल (CRISIL),

3.ICRA,

4.केयर (CARE),

5.इंडिया रेटिंग्स,

6.इन्फोमेरिक्स (INFOMERICS), और

7.ब्रिकवर्क।

> ब्रिकवर्क रेटिंग्स को छोड़कर शेष सभी छह CRAS भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रमाणन प्राप्त घरेलू CRAS हैं।

CRAS(ICRA) का विनियमनः

• इनका विनियमन मुख्यतः सेबी द्वारा किया जाता है।

साथ ही, इन्हें सेबी (क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां/ICRA) विनियम, 1999 के जरिए शासित किया जाता है।

• RBI बैंक ऋण और सुविधाओं की रेटिंग के उद्देश्य से CRAS को बाहरी क्रेडिट मूल्यांकन संस्थाओं के रूप में प्रमाणन प्रदान करता है।

CRAS से निम्नलिखित समस्याएं जुड़ी हुई हैंः

• रेटिंग शॉपिंग (प्रतिभूति जारीकर्ता द्वारा विविध CRAS के विश्लेषण के बाद सबसे अनुकूल रेटिंग का चयन करना);

• अपारदर्शी और लुटिपूर्ण पद्धतियां;

• पूर्वाग्रह आदि।

आगे की राहः

• क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को ‘जारीकर्ता द्वारा भुगतान’ मॉडल की जगह ‘निवेशक’ या विनियामक द्वारा भुगतान’ मॉडल अपनाया जाना चाहिए।

• इससे संस्थाओं द्वारा रेटिंग एजेंसियों को भुगतान के द्वारा अनुकूल रेटिंग प्राप्त करने की प्रथा को हतोत्साहित किया जा सकेगा।

• पारदर्शी रेटिंग पद्धतियां अपनाई जानी चाहिए।

• CRAS की रोटेशन प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।

इसके तहत कुछ वर्षों के अंतराल पर नई रेटिंग एजेंसी से रेटिंग करना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

इससे निवेशकों को कंपनी या संस्था की सही आर्थिक स्थिति का पता चल सकेगा आदि।

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