इसका(Hydrogen) आयोजन नीदरलैंड सरकार की साझेदारी में सस्टेनेबल एनर्जी काउंसिल द्वारा किया गया था।
इसमें भारत के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक इंडियन पवेलियन स्थापित किया था। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति को प्रदर्शित करना था।
ग्रीन हाइड्रोजन (GH2/Hydrogen) के बारे में:
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर जल से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करके उत्पादित हाइड्रोजन को ही ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।
इसे सौर या पवन ऊर्जा की मदद से जल के फोटो-कैटालिसिस और इलेक्ट्रो-कैटलिसिस द्वारा उत्पादित किया जाता है।
(Hydrogen)प्रमुख उपयोगः
इसका उपयोग आंतरिक दहन इंजन (Internal combustion engines) वाले वाहनों में ईंधन के रूप में होता है।
अन्य जीवाश्म ईंधन की तुलना में हाइड्रोजन और प्राकृतिक गैस के मिश्रण वाले ईंधन से कम उत्सर्जन होता है।
इसका उपयोग वाहनों को चलाने के लिए H2 फ्यूल सेल में किया जाता है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाली परियोजनाओं की निगरानी, सत्यापन और प्रमाणन के लिए एजेंसियों की मान्यता देने वाला नोडल प्राधिकरण है।
ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम:
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM), 2023: इसके तहत वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके तहत, स्ट्रैटेजिक इंटरवेंशन फॉर ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (SIGHT) शुरू किया गया है।
इस प्रोग्राम के जरिए इलेक्ट्रोलाइजर के विनिर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
NGHM के लिए समर्पित पोर्टलः यह NGHM से संबंधित जानकारी के लिए वन-स्टॉप पोर्टल के रूप में कार्य करता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर की शुरुआत की है।
इसका उद्देश्य भारत में ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम और उससे जुड़े नवाचार को बढ़ावा देना है।
हाइड्रोजन के बारे में:
यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, ज्वलनशील गैस है।यह ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में विद्यमान तत्व है। यह पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाला तीसरा सबसे प्रचुर तत्व भी है।
यह क्षार धातुओं और हैलोजन के गुणधर्म को दर्शाता है।
भारत को H2 आधारित ईंधन की आवश्यकता क्यों है:
यह जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में काम कर सकता है। साथ ही, यह भारत की राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है।
यह 2030 तक भारत की एमिशन इंटेंसिटी को 45% तक कम कर सकता है।
• यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च को भी कम कर सकता है।
गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक (80%) है। इसके अलावा, भारत अपनी प्राकृतिक गैस संबंधी आवश्यकता का लगभग 54% आयात करता है।
H2 आधारित ईंधन को लेकर चिंताएं:
हाइड्रोजन बहुत अधिक ज्वलनशील प्रकृति की गैस है।
इसके उत्पादन, परिवहन एवं भंडारण में अधिक लागत आती है और इसके लिए आवश्यक अवसंरचना की भी कमी है।