क्रिस्पर (CRISPR) जैसी नई जीन एडिटिंग(GM Crops)तकनीकें जीन एडिटिंग के क्षेत्र में क्रांति ला रही हैं।
इन तकनीकों की मदद से बाह्य जीन्स को प्रवेश कराए बिना ही अत्यंत सटीकता के साथ जीन एडिटिंग की जा सकती है।
ये तकनीकें GM फसलों की नई किस्मों को विकसित करने में मदद कर रही हैं।
इन तकनीकों की मदद से खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि किसी फसल के DNA में आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों की मदद से संशोधन करके तैयार की गई फसल को GM फसल कहते हैं।
भारत में आनुवंशिक(GM Crops) रूप से संशोधित फसलों की स्थिति पर एक नज़रः
भारत में बी.टी. कपास व्यावसायिक खेती के लिए स्वीकृत एकमात्र GM या आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल है।
2022 में, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने मस्टर्ड हाइब्रिड DMH- 11 को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की थी। हालांकि, यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
कई अन्य फसलें जैसे चना, अरहर, मक्का, गन्ना आदि अनुसंधान और फील्ड ट्रायल्स के अलग-अलग चरणों में हैं।
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों(GM Crops) का महत्त्वः
इन फसलों से अधिक पैदावार होती है।
इनकी मदद से खाद्य उपलब्धता और किसानों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है।
GM फसलें भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी को दूर कर सकती हैं।
इससे कुपोषण की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
इन फसलों में कई प्रकार के लाभकारी गुण होते हैं।
ये गुण इन फसलों को चरम मौसमी दशाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली नई बीमारियों एवं आपदाओं को सहने में सक्षम बनाते हैं।
GM फसलों की मदद से वायुमंडलीय कार्बन को बेहतर ढंग से कैप्चर और स्टोर किया जा सकता है।
इससे जलवायु परिवर्तन का सामना करने में भी मदद मिलेगी।
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों से जुड़ी चिंताएं:
फसलों में होने वाले रोगों को फैलाने वाले कीटों में प्रतिरोध क्षमता विकसित हो सकती है।
इन फसलों के उत्पादन से GM फसल विकसित करने वाली कुछ बड़ी कंपनियों का एकाधिकार स्थापित हो सकता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि इन किस्मों पर वे बौद्धिक संपदा अधिकार का दावा कर सकती हैं।
इसमें प्रायः बड़े पैमाने पर मोनोकल्चर या एकल फसल की खेती की जाती है।
इसके लिए बड़ी मात्रा में कृतिम उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई की आवश्यकता होती है।
GM फसलों से भविष्य के संभावित जोखिमों के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव है।
भारत में GM फसलों से जुड़े विनियमन:
भारत में, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986) के अंतर्गत बनाए गए “खतरनाक सूक्ष्मजीवों/ आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के विनिर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के नियम, 1989” में GM फसलों के लिए विनियमन प्रदान किए गए हैं।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्यरत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) GM फसलों की पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन का कार्य देखती है।
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