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‘भौगोलिक संकेत’ (GI Tag) का उपयोग उन उत्पादों पर किया जाता है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है। इसी उत्पत्ति के कारण इन उत्पादों में विशेष गुण या प्रसिद्धि होती है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान(GI Tag):

भौगोलिक संकेत(GI Tag) को ‘औद्योगिक संपत्ति की सुरक्षा के लिए पेरिस कन्वेंशन’ के तहत बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) के एक तत्व के रूप में शामिल किया गया है।

यह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के ‘बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू (ट्रिप्स) समझौते’ के अंतर्गत भी शामिल है।

भारत में, वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (Geographical Indications) (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 जीआई के पंजीकरण और बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है। 

इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों को मान्यता प्रदान करने के लिए किया जाता है।

पंजीकरण कार्यालय भौगोलिक संकेत(GI Tag) रजिस्ट्रार।

अवधि: भौगोलिक संकेत का उपयोग 10 वर्षों तक किया जा सकता है।  इस अवधि का नवीनीकरण किया जा सकता है।

नोडल विभाग/मंत्रालय: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय)।

महत्व: यह किसी विशेष उत्पाद के अनधिकृत उपयोग के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। 

साथ ही, यह उस उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देता है और उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता को सुनिश्चित करता है।

GI Tag

राज्यों के उत्पादो और उनका विवरण का उल्लेख(GI Tag):

ओडिशा: कटक रूपा तारकशी (सिल्वर फिलिग्री)   

इसका(GI Tag) उपयोग लगभग 3500 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) में आभूषण बनाने में किया जाता था। 

आज भी यह इराक, मिस्र के  में तैलचित्र के रूप में प्रचलित है। यह कलाकारी इंडोनेशिया होते हुए फारस के कटक तक पहुंची थी।

पश्चिम बंगाल(GI Tag): बंगला मलमल

यह केवल कपास से बना एक पारंपरिक हथकरघा शिल्प है।

आंध्र प्रदेश:नरसापुर क्रोशे लेस उत्पाद

इन्हें धार्मिक प्रचारकों द्वारा नरसापुर लाया गया था।

 मध्य प्रदेश: रतलाम रियावन लहसुन

 असम: माजुली मास्क और माजुली पांडुलिपि पेंटिंग

 त्रिपुरा: रिसा वस्त्र

 तेलंगाना: हैदराबाद की लाख चूड़ियाँ

 गुजरात: कच्छ रोगन शिल्प,अम्बाजी सफेद संगमरमर

इसका निर्माण तब होता हैं,जब चुना पत्थर पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे पुनः क्रिस्टलीकृत हो जाता हैं।

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