हाल ही में, असम(Assam) में आई बाढ़(Flood और उसके प्रकोप ने पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ की बारंबारता से उत्पन्न खतरे को उजागर किया है।
पूर्वोत्तर भारत में बार-बार बाढ़(Flood आने के खतरे के लिए उत्तरदायी कारण:
नदी का अस्थिर अपवाहः
ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां उच्च तलछट जमाव, खड़ी ढलाने तथा अनुप्रस्थ ढाल के कारण गुंफित (braided) एवं अस्थिर हैं।
गुंफित नदी वास्तव में कई धाराओं का एक नेटवर्क होता है, जो अक्सर छोटे और अस्थायी द्वीपों (बार) द्वारा अलग कर दी गई होती है।
भूवैज्ञानिक कारणः
यह संपूर्ण क्षेत्र उच्च सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र में आता है। बार-बार आने वाले प्रबल भूकंप भी नदी मागों और उनके अपवाह को अस्थिर बनाते हैं।
जल विज्ञान-मौसम विज्ञान (Hydrometeorology) संबंधी कारकः
भारत में ब्रह्मपुत्र और बराक नदी के जल अपवाह क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफानों के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। ऐसे तूफान खासकर मानसून मौसम के अंत में देखने को मिलते हैं।
ज्ञातव्य है कि ये तूफान भारी वर्षा लाते हैं, जिससे नदियां उफान पर आ जाती हैं और आसपास के इलाकों में बाढ़ आ जाती है।
जलवायु परिवर्तनः
CSE की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वोत्तर भारत में होने वाली वर्षा की औसत मात्रा में कमी दर्ज की जा रही है, परन्तु यह देखा गया है कि इस क्षेत्र के कुछ भागों में काफी तेज वर्षा होती है।
उदाहरण के लिए- इसी रिपोर्ट के अनुसार असम में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में स्थित जिलों में पिछले 30 वर्षों में बारिश की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।
जल निकासी में समस्याः
मानसून मौसम में पूर्वोत्तर भारत की मुख्य नदियों का बहाव तेज हो जाता है।
इसलिए, कम अवधि में भारी वर्षा होने की स्थिति में वर्षा जल नदी बेसिन में नहीं बह पाता।
यह जल आसपास के इलाकों में फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है।
मानवजनित कारक निम्नलिखित हैं:
नदी मार्ग में निर्माण कार्य
नदी बेसिन का अतिक्रमण
नदियों के प्राकृतिक अपवाह में रुकावट डालने वाले तटबंधों का निर्माण आदि
पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ का प्रकोप कम करने के लिए की गई सिफारिशें
ड्रेजिंग द्वारा नदी की जल-धारण क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए।
बाढ़ आने के पूर्व उदाहरणों के अनुसार नदी की फ्लड जोनिंग की जानी चाहिए।
पूर्वोत्तर राज्यों के सभी बांधों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (अपस्ट्रीम कैचमेंट) में आधुनिक मौसम स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है।
बाढ़(Flood) से सुरक्षा प्रदान करने वाली संरचनाओं को मजबूत करना चाहिए।
ज्ञातव्य है कि मौजूदा अधिकांश संरचनाएं बहुत पुरानी हो चुकी हैं।
वनरोपण और आर्द्रभूमियों का कायाकल्प करने की जरूरत है।
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