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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर में(Domestic Violence Against Women) लगभग हर तीसरी महिला अपने जीवनकाल में किसी-न-किसी रूप से शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा(Domestic Violence Against Women) की स्थिति: 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-2021 के अनुसार, 

कर्नाटक में यह प्रतिशत (घरेलू हिंसा) सबसे अधिक था, इसके बाद बिहार, मणिपुर और तेलंगाना का स्थान है। 

18-49 आयु वर्ग की 29.3% विवाहित महिलाओं ने वैवाहिक हिंसा (शारीरिक और / या लैंगिक हिंसा) का सामना किया है।

भारत में घरेलू हिंसा(Domestic Violence Against Women) के लिए कानून:

Domestic Violence Against Women

संविधान का अनुच्छेद 15(3) विधायिका को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।

इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 2005 में, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (PWDVA)  पारित किया गया था। 

PWDVA, 2005 के मुख्य प्रावधानः

घरेलू हिंसा में शारीरिक, मौखिक, भावनात्मक, आर्थिक या/और लैंगिक शोषण शामिल है।

कवरेजः सभी महिलाएं, इनमें एक साझा घर में रहने वाली माता, बहन, पत्नी, विधवा या पार्टनर शामिल हो सकती हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक बच्चा भी राहत का हकदार है।

किसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है:

(1) कोई भी वयस्क पुरुष सदस्य जो महिला के साथ घरेलू संबंध में रहा है।

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने हिरल पी. हरसोरा और अन्य बनाम कुसुम नारोत्तमदास हरसोरा और अन्य वाद में एक अहम फैसला सुनाया।

इस फैसले में कोर्ट ने PWDVA कानून में उल्लिखित “व्यक्ति (Person)” शब्द से पहले आने वाले “वयस्क पुरुष (Adult male)” शब्द को हटा दिया।

(2) पति या साथी पुरुष के रिश्तेदार।

(3) इसमें पुरुष साथी के पुरुष और महिला रिश्तेदार, दोनों शामिल हैं।

पीड़िता यो प्रोटेक्शन ऑफिसर या कोई अन्य व्यक्ति पीड़िता की ओर से मजिस्ट्रेट के पास आवेदन दे सकता है।

यह आवेदन इस अधिनियम के तहत एक या एक से अधिक राहत की मांग करने के लिए दिया जाता है।

पीड़िता को आश्रय या चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए आश्रय गृह या चिकित्सा सुविधा का भी प्रावधान किया गया है।

यह अधिनियम मौजूदा कानूनों के अतिरिक्त है।

इसके अलावा, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अन्य कानूनी कार्यवाहियों में भी राहत मांगी जा सकती है,

जैसे- तलाक, भरण-पोषण, भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, आदि के लिए याचिका।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A:

जो कोई भी, चाहे वह महिला का पति हो या पति का रिश्तेदार, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करता है,

उसे किसी निर्धारित अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

कारावास की अवधि को तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।

महिलाओं को हिंसा से बचाने के लिए की गई अन्य पहलें:

PWDVA, 2005 में वैवाहिक बलात्कार को केवल दीवानी (Civil) मामलों के तहत रखा गया है।

इसका मतलब यह है कि वैवाहिक बलात्कार के आरोपी के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही (Criminal proceedings) नहीं की जा सकती।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 में धोखे से या झूठे वादे करके किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने को अपराध घोषित किया गया है।

UN वीमेन और WHO ने संयुक्त राष्ट्र की दस अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेंसीज के साथ मिलकर महिलाओं तथा लड़कियों के खिलाफ हिंसा को रोकने एवं उसका जवाब देने के लिए रेस्पेक्ट वीमेन फ्रेमवर्क तैयार किया है।

सार्वजनिक और निजी, दोनों जगहों पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं की सहायता के लिए देश में वन स्टॉप सेंटर्स स्थापित किए गए हैं।

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