आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिला में मुरिया जनजाति बीजों को संरक्षित करने की पारंपरिक विधि डेडा(Deda Method) का इस्तेमाल कर रही है।
डेडा पद्धति(Deda Method) के बारे में:
इस विधि में बीजों को पत्तियों में लपेटा जाता है।
इसके बाद गोलाकार बंडल के रूप में कसकर बांधा जाता है और सियाली पत्तियों के साथ बुना जाता है।
लाभः यह विधि बीजों को कीटों और कीड़ों से बचाती है। इसके अंतर्गत बीजों को 5 साल तक संग्रहीत और उपयोग किया जा सकता है।
मुरिया जनजातियों के बारे में:
यह छत्तीसगढ़ के गोंड जनजाति का उप-समूह है। यह समुदाय छत्तीसगढ़ राज्य में रहता है।
इनका संबंध बस्तर के मुरिया विद्रोह (1876) से है।
यह विद्रोह बस्तर के दीवान गोपीनाथ कपरदास के खिलाफ किया गया था।
रीति-रिवाज:
मृत स्तंभ (गुड़ी): इसके तहत मृतकों को दफनाने के बाद 6 से 7 फीट ऊंची शिला रखी/ बनाई जाती है।
घोटुलः यह एक प्रकार की कुटीर है, जहां आदिवासी युवक और युवतियां अपना जीवनसाथी चुनते हैं।