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चीन के साथ सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर कर मालदीव ने खुद को भारत(china-maldive-india) से और दूर कर लिया है

मालदीव का यह फैसला वहां के राष्ट्रपति की घोषणा से मेल खाता है।  इस घोषणा में कहा गया है कि “मालदीव में कोई भारतीय सैनिक नहीं होंगे”।

मालदीव में चीन(china-maldive-india) की बढ़ती सक्रियता:

 चीन तेजी से मालदीव में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।

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एक चीनी कंपनी ने 50 साल की लीज पर फेयदु फिनोल्हू नामक द्वीप का अधिग्रहण किया है।

चीन, मालदीव(china-maldive) में बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश बढ़ा रहा है।  इसका एक उदाहरण 200 मिलियन डॉलर का “चीन-मालदीव मैत्री पुल” है।

चीनी अनुसंधान पोत “जियांग यांग होंग 03” को माले बंदरगाह पर डॉक करने की मंजूरी दे दी गई है।

भारत के लिए चिंता का विषय:

भारत की सुरक्षा: मालदीव के द्वीप भारत के पश्चिमी तट के करीब हैं। 

ऐसे में मालदीव में चीन की मौजूदगी भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती है।

क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदल सकती है। 

इससे इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को चुनौती मिल सकती है।

चीन ने जिबूती में एक सैन्य अड्डा स्थापित किया है। 

इसके अतिरिक्त, यह श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में “दोहरे उपयोग (सैन्य और नागरिक) बंदरगाह” विकसित कर रहा है।

रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: ‘भारत और चीन दोनों के लिए हिंद महासागर का रणनीतिक महत्व है। 

क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा सकता है।

 चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति: इस रणनीति के तहत चीन का लक्ष्य भारत को घेरने के लिए हिंद महासागर में नौसैनिक अड्डों और बुनियादी ढांचे का एक नेटवर्क स्थापित करना है।

चीन(China) के प्रभाव को कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम:

रणनीतिक साझेदारी: भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अन्य क्षेत्रीय भागीदारों जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

बहुपक्षीय संबंध: हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (आईओएनएस) और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) जैसे मंचों के माध्यम से सहयोग बढ़ाया जा रहा है।

 डिप्लोमैटिक आउटरीच: दुनिया के देशों को चीन के बढ़ते प्रभाव के खतरों से अवगत कराया जा रहा है।

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