हाल ही में, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने एक बैठक(India China Border Issues) में इस बात पर सहमति जताई कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लंबे समय तक सैन्य गतिरोध जारी रहना किसी भी पक्ष के लिए लाभकारी नहीं है। उन्होंने विवाद के शीघ्र समाधान की आवश्यकता पर बल दिया।
बैठक के मुख्य परिणामों पर एक नजर:
भारत ने पूर्वी लद्दाख में शेष सीमा क्षेत्रों में तनाव समाप्त करने (सैन्य टुकड़ी को हटाने) और सीमा पर शांति एवं स्थिरता बहाल करने के प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
ज्ञातव्य है कि 2020 में पैंगोंग झील क्षेत्र में झड़प और फिर गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से पूर्वी लद्दाख में गतिरोध जारी है।
दोनों देशों के विदेश मंत्री इस बात पर भी सहमत हुए कि भारत- चीन सीमा मामलों पर परामर्श और
समन्वय पर कार्य तंत्र (WMCC) को शीघ्र बैठक करनी चाहिए।
भारत-चीन सीमा विवाद(India China Border Issues):
चीन के साथ भारत की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है।
साथ ही, कुछ हिस्सों में कोई पारस्परिक रूप से सहमत LAC भी नहीं है।
भारत-चीन सीमा(India China Border Issues) निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में विभाजित है:
पश्चिमी क्षेत्र(लद्दाख):
भारत जॉनसन रेखा को सीमा मानता है, जिसमें अक्साई चिन भारतीय क्षेत्र में शामिल है।
इसके विपरीत, चीन मैककार्टनी-मैकडोनाल्ड रेखा को सीमा मानता है।
मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश):
यह काफी हद तक निर्विवाद क्षेत्र है।
पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम):
यहां मैकमहोन रेखा को LAC माना जाता है, जिसे 1914 के शिमला सम्मेलन के दौरान निर्धारित किया गया था।
चीन मैकमहोन रेखा को खारिज करता है और पूरे अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
आगे की राह:
तीन परस्पर घटकों (परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित) द्वारा भारत व चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों का मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।
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