यह अध्ययन ‘जैव-ऊर्जा विस्तार और बहाली को संतुलित करनाः (BioEnergy crops)जैव विविधता अक्षुण्णता में वैश्विक बदलाव’ शीर्षक से जारी किया गया है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि निम्नीकृत या परित्यक्त कृषि भूमि में ऊर्जा फसलों के रोपण को प्राथमिकता देने से अधिक लाभ मिल सकता है।
जैव-ऊर्जा फसलों (Bioenergy Crops) के बारे में
इसके तहत बायोमास का उत्पादन करने के उद्देश्य से विशेष प्रकार के पादप उगाए जाते हैं।
इस बायोमास को बाद में ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तित किया जा सकता है।
ऐसी फसलों के उदाहरण हैं- एनर्जी ग्रास, तिलहन फसलें, लिग्रोसेल्यूलोजिक फसलें आदि।
जैव-ऊर्जा फसलों को तीन विकास-चरणों में वर्गीकृत किया जाता है:
पहली पीढ़ीः
इसके लिए ऊर्जा रूपांतरण प्रौद्योगिकियां मौजूद हैं।
इस पीढ़ी में जैव-ऊर्जा उत्पादन के लिए चीनी उत्पादन करने वाली फसलें (गन्ना आदि), स्टार्च, तिलहन फसलें इत्यादि का उपयोग किया जाता है।
दूसरी पीढ़ीः
इस पीढ़ी की ऊर्जा रूपांतरण प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है।
इसमेंखाद्य फसलों की जगह पॉलीसेकेराइड सेलूलोज जैसी लिग्रोसेल्यूलोज़ गैर-खाद्य फसलों से जैव-ऊर्जा का उत्पादन किया जाएगा।
तीसरी पीढ़ीः
इसमें भविष्य की तकनीके शामिल हैं।
इसमें जैव-ऊर्जा उत्पादन के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (GM क्रॉप्स) आदि का उपयोग किया जाएगा।
जैव-ऊर्जा फसल(BioEnergy Crops) उत्पादन की निम्नलिखित चुनौतियां हैं:
भूमि संसाधन सीमित हैं और इनके उपयोग को लेकर लोगों के बीच मतभेद है एवं नीतियों में एक मत नहीं है;
जैव-ऊर्जा के लिए फसल उत्पादन में अधिक कृषि भूमि का उपयोग करने से खाद्य संकट पैदा हो सकता है;
गीले बायोमास को कृषि भूमि से जैव-ऊर्जा उत्पादन स्थल तक परिवहन करने में अधिक ऊर्जा की खपत होगी और अधिक लागत आ सकती है, आदि।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
अध्ययन में अलग-अलग भूमि-उपयोग में बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स (BII) की गणना करने के लिए जैव विविधता संबंधी डेटा का उपयोग किया गया था।
बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स के तहत किसी क्षेत्र में देशज स्थलीय प्रजातियों की औसत संख्या की उस क्षेत्र में स्पष्ट मानव गतिविधियों के प्रभाव से पहले की उनकी संख्या से तुलना की जाती है।
प्राकृतिक वनस्पति के अधिक विस्तार और उच्च BII वाले स्थानों पर ऊर्जा फसलें लगाने से इंडेक्स में काफी कमी आएगी।
जैव-ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहलें:
राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रमः
यह केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कार्यक्रम है।
इस कार्यक्रम में तीन उप-योजनाएं शामिल हैं:
अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रमः
यह शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों एवं अवशेषों से ऊर्जा उत्पादन पर केंद्रित है।
बायोमास कार्यक्रमः
इसके तहत बायोमास ब्रिकेट्स और पेलेट्स के निर्माण को समर्थन देने तथा उद्योगों (शुगर मिल्स, पेपर मिल्स) में बायोमास (गैर-खोई) के साथ-साथ उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना है।
बायोगैस कार्यक्रमः इसके तहत बायोगैस संयंत्रों की स्थापना की जा रही है।
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