इस लोक अदालत(Lok Adalat) का आयोजन उपयुक्त विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए किया जाएगा।
लोक अदालत विवाद समाधान की एक वैकल्पिक प्रणाली है।
लोक अदालत (Peoples Court/Lok Adalat) के बारे में:
इसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक दर्जा प्राप्त है।
वर्ष 2002 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 में संशोधन किया गया था।
इस संशोधन के जरिए जन-उपयोगिता सेवाओं (पब्लिक यूटिलिटी सर्विसेज) से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए स्थायी लोक अदालतों का आयोजन किया गया था।
ये अदालतें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित हैं।
ये अदालतें सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 से बाध्य नहीं हैं।
लोक अदालत के पास वही शक्तियां हैं, जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत एक सिविल कोर्ट को प्राप्त होती हैं।
लोक अदालतों के निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।
इनके निर्णयों के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जा सकती।
लोक अदालत(Lok Adalat) में निम्नलिखित मामले लाए जा सकते हैं:
किसी भी न्यायालय में लंबित कोई भी मामला,
ऐसा कोई भी विवाद जिसे किसी न्यायालय के समक्ष नहीं लाया गया हो और निकट भविष्य में न्यायालय के समक्ष दायर किए जाने की संभावना हो।
लोक अदालत में सुलझाए जाने वाले मामलों में शामिल हैं- विवाह संबंधी विवाद, संपत्ति विवाद, मोटर दुर्घटना संबंधी दावे, भूमि अधिग्रहण आदि।
देश में पहली लोक अदालत 1982 में गुजरात के जूनागढ़ में आयोजित की गई थी।
लोक अदालतों का महत्त्व:
विवादों का त्वरित निपटारा हो पाता है।
विवादों के निपटारे में अधिक खर्च नहीं आता है, क्योंकि लोक अदालतों में विवाद दायर करते समय कोई अदालती शुल्क नहीं वसूला जाता है।
न्यायपालिका पर लंबित मामलों का बोझ कम करती हैं।
भारत में विवाद निपटान की अन्य प्रमुख वैकल्पिक प्रणालियां:
माध्यस्थम् (Arbitration): यह अर्ध-न्यायिक प्रणाली है। इसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं।
मध्यस्थता (Mediation): इसमें विवादों पर स्वैच्छिक और सहमति के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
सुलह (Conciliation): सुलहकर्ता विवाद के पक्षकारों की आपसी सहमति से समझौता करने में सहायता करता है। इसके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते हैं।
मुझे मेक्सिकन व्यंजन पसंद हैं और cuajitos de Cadereyta के बारे में पढ़कर बहुत खुशी हुई। इसे मेरी विशलिस्ट में जोड़ लिया है।