चीन अपने सामरिक व रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ताइवान, दक्षिण चीन सागर, भारत के साथ सीमा विवाद वाले क्षेत्रों आदि में ग्रे-ज़ोन युद्ध(Grey-Zone Warfare) नीतियां अपना रहा है।
ग्रे-ज़ोन युद्ध(Grey-Zone Warfare) के बारे में:
यह प्रत्यक्ष संघर्ष और शांति के बीच एक अस्पष्ट स्थिति होती है। इसका दायरा नेटवर्क-केंद्रित युद्ध-रणनीति जैसी तकनीकी प्रगति के कारण बढ़ गया है।
इसका उद्देश्य किसी विरोधी को इस तरह से नुकसान पहुंचाना है कि उसे कोई खतरा महसूस ही न हो या उसे यह एहसास न हो कि उस पर हमला हो रहा है।
इसमें युद्ध के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक, दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
इस युद्ध नीति की कार्यप्रणालीः इसमें सलामी स्लाइसिंग जैसी कुटिल चाल शामिल है।
इसमें विरोधी देश के क्षेत्र को टुकड़ों में जीतने के लिए छोटी सैन्य कार्रवाइयां की जाती हैं। इसके अलावा, इसमें कुटिल आर्थिक गतिविधियां (जैसे प्रतिबंध), साइबर हमले, मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन्स (जैसे दुष्प्रचार अभियान), प्रॉक्सी बलों का उपयोग आदि शामिल हैं।
ग्रे-ज़ोन युद्ध(Grey-Zone Warfare) की विशेषताएं:
ऐसी कार्रवाई जो युद्ध की श्रेणी में नहीं आतीः हमलावर देश गैर-सैन्य उपकरणों का उपयोग करता है,
जिनके खिलाफ विपक्षी देश द्वारा सैन्य कार्रवाई को उचित नहीं ठहराया जाता है।
धीरे-धीरे साहसिक कदम उठानाः इस तरह की कार्रवाई वर्षों या दशकों तक चलती रहती हैं।
इस वजह से ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ निर्णायक या एकबारगी जवाबी कार्रवाई के अवसर कम हो जाते हैं।
उत्तरदायित्व / जवाबदेही का अभावः हमलावर देश ऐसी ग्रे-ज़ोन गतिविधियों के लिए जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता है और,
इस प्रकार, जवाबी कार्रवाई की संभावना कम हो जाती है।
लक्ष्य विशिष्टः इस रणनीति में आमतौर पर लक्ष्य कमजोर देश होते हैं।
ऐसे देशों के पास घरेलू या रणनीतिक कारणों से जवाबी कार्रवाई की बहुत कम क्षमता होती है।
ग्रे-ज़ोन युद्ध रणनीति से बचने के लिए आवश्यक उपायः
विरोधी देश की गतिविधियों की सक्रिय निगरानी की जानी चाहिए;
ऐसे देशों से संबंधित ख़ुफ़िया जानकारी को समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझा किया जाना चाहिए;
अपनी क्षमता के प्रदर्शन के माध्यम से विरोधियों के बीच भय बनाए रखना चाहिए;
नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए आदि।
ग्रे-ज़ोन युद्ध रणनीति के खिलाफ भारत की तैयारी:
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजनः
यह पद तीनों सेनाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) के कामकाज का समन्वय करने के लिए सृजित किया गया है।
रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरताः
रक्षा खरीद प्रक्रिया (DAP) 2020 जैसी पहलों की मदद से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोगः
उदाहरण के लिए भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA) जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
अन्यः भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) की स्थापना की गई है।