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अधिकांश किसान धान की खेती(Paddy farming) के लिए नर्सरी बेड विधि अपनाते हैं। 

फार्म के कुल क्षेत्रफल के लगभग 1/20वें भाग पर ‘नर्सरी बेड’ तैयार किये जाते हैं।  यहां क्यारियों में धान के बीज बोए जाते हैं।

निचले क्षेत्रों में वे बुआई के 25 दिनों के भीतर तैयार हो जाते हैं,

जबकि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उन्हें रोपाई के लिए तैयार होने में लगभग 55 दिन लगते हैं। 

धान की खेती की चार विधियाँ प्रयोग की जाती हैं अर्थात् रोपाई विधि, ड्रिलिंग विधि, प्रसारण विधि और जापानी विधि।

प्रत्यारोपण(Paddy farming) या रोपण विधि:

यह सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली विधि है।  इसमें बीजों को पहले नर्सरी में बोया जाता है,

और जब 3-4 पत्तियाँ आ जाती हैं तो पौध को मुख्य खेत में रोप दिया जाता है।

  हालाँकि यह सर्वोत्तम उपज देने वाली विधि है, लेकिन इसमें बहुत अधिक श्रम की आवश्यकता होती है।

इस विधि में 1kg धान उगाने में जल की मात्रा लगभग 1800 लीटर से 3000 लीटर तक लग जाती हैं।

ड्रिलिंग विधि:

यह विधि विशेष रूप से केवल भारत में ही अपनाई जाती है। 

इस विधि में भूमि की जुताई हल या ट्रैक्टर से की जाती है और साथ ही व्यक्ति बीज भी बोता है। 

इसके तहत आमतौर पर बैलों का इस्तेमाल जमीन जोतने के लिए किया जाता है।

Paddy farming

प्रसारण विधि:

इस विधि में, बीजों को आम तौर पर एक बड़े क्षेत्र या पूरे खेत में हाथ से फैलाया जाता है। 

इसमें बहुत कम श्रम और सटीकता की आवश्यकता होती है।  यह विधि अन्य विधियों की तुलना में बहुत कम उपज देती है।

जापानी पद्धति उन धान की किस्मों के लिए अपनाई जाती है जो अधिक उपज देती हैं और बड़ी मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है। 

सबसे पहले बीजों को नर्सरी बेड में बोया जाता है और फिर उन्हें मुख्य खेत में रोपा जाता है।

  इस विधि को अधिक उपज देने वाली किस्मों के लिए अत्यधिक सफल विधि के रूप में देखा जा रहा है।

 धान की खेती(Paddy farming) की एक और नई विधि चावल गहनता प्रणाली है। 

इस विधि को एसआरआई विधि या मेडागास्कर विधि के नाम से भी जाना जाता है।

  धान की खेती की इस विधि में यथासंभव जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है। 

इसकी शुरुआत एक वर्गाकार पैटर्न में अकेले और व्यापक दूरी पर लगाए गए पौधों से होती है;  तथा रुक-रुक कर सिंचाई करने से मिट्टी नम तो रहती है परन्तु जलमग्न नहीं होती है।

  इसमें खरपतवार को वीडर के माध्यम से खेत से उखाड़कर मिट्टी में मिला दिया जाता है, जिससे मिट्टी सक्रिय रूप से हवादार हो जाती है।

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