एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में पुरुषों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों में जितनी वृद्धि हुई है, उतना ही दहेज(Dowry System) का चलन भी वढ़ा है।
दहेज प्रथा(Dowry System) के बारे में:
डाउरी (Dowry), जिसे दहेज (उत्तर भारत) या स्त्रीधनम (दक्षिण भारत) के रूप में भी जाना जाता है,
डाउरी को 1961 के दहेज प्रतिषेध अधिनियम द्वारा परिभाषित किया गया है।
इस कानून में विवाह के संबंध में एक पक्ष / माता-पिता द्वारा दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई,
या देने के लिए सहमत कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को दहेज कहा गया है।
दहेज़ के लिए हत्या को भारतीय दंड संहिता में वर्ष 1986 में एक नए अपराध के रूप में जोड़ा गया था।
दहेज मृत्यु (कानून में हत्या शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B में परिभाषित किया गया है।
दहेज़ मृत्यु (Dowry Death) के मामले में इस धारा को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B (दहेज मृत्यु के बारे में उपधारणा) के साथ पढ़ा जाता है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 80 में दहेज मृत्यु से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।
दहेज के लिए हत्या के अतिरिक्त, क्रूरता (किसी महिला का उत्पीड़न या यातना),
और घरेलू हिंसा भी दहेज संबंधी अपराध के अन्य रूप हैं।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961:
जांच के उद्देश्य से दहेज को एक संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) माना जाता है।
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध गैर-जमानती और नॉन-कंपाउंडेबल (जिससे समझौता न किया जा सके) होता है।
स्वयं को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर होती है।
दहेज प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार को करनी होती है।
निम्नलिखित(Dowry System) मामलों में कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है:
(1) दहेज देना या लेना, या दहेज़ लेने या देने के लिए उकसाना;
(2) दहेज़ की मांग करना; तथा
(3) दहेज़ से संबंधित विज्ञापन।