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शोधकर्ताओं ने कुत्तों और मानव, दोनों के वृषणकोष में 12 प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स (Microplastics.) पाए हैं।

अध्ययन(Microplastics.) के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

 मनुष्यों और कुत्तों की नर प्रजनन प्रणाली में प्रमुख पॉलिमर प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स अपेक्षाकृत समान अनुपात में पाए गए हैं।

इनमें पॉलीथीन (PE) प्रकार के पॉलिमर का अनुपात अधिक है।

 यह अध्ययन इस तथ्य को रेखांकित करता है कि माइक्रोप्लास्टिक से शुक्राणुओं की संख्या में संभावित कमी हो सकती है।

साथ ही, पुरुष प्रजनन क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

माइक्रोप्लास्टिक(Microplastics.) के बारे में:

Microplastics

 माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से कम लंबाई के छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं। ये मनुष्यों सहित सभी जीवों के लिए हानिकारक होते हैं।

 माइक्रोप्लास्टिक की निम्नलिखित दो श्रेणियां हैं:

 प्राइमरी माइक्रोप्लास्टिक्सः ये व्यावसायिक उपयोग के लिए डिज़ाइन किए गए छोटे प्लास्टिक कण होते हैं।

इनके उदाहरण हैं: सौंदर्य प्रसाधन, टूथपेस्ट आदि में प्रयुक्त माइक्रोबीड्स ।

 परिधानों और अन्य प्रकार के वस्त्र उत्पादों (मछली पकड़ने के जाल) से निकलने वाले माइक्रोफ़ाइबर।

सेकेंडरी माइक्रोप्लास्टिकः ये ऐसे कण हैं, जो पानी की बोतल जैसे बड़े आकार के प्लास्टिक उत्पादों का क्षरण होने से उत्पन्न होते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव:

 मानव स्वास्थ्य जोखिमः माइक्रोप्लास्टिक्स पोषण चक्र के जरिए और जैव-आवर्धन (Biomagnification) के माध्यम से मनुष्यों तक पहुंचता है।

यह अंतःस्रावी व्यवधान, वजन बढ़ना, इंसुलिन प्रतिरोध, प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट, कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकता है।

इससे पहले माइक्रोप्लास्टिक्स मानव रक्त, फेफड़े, स्तन के दूध और प्लेसेंटा में भी पाए गए हैं।

 वन्यजीवों को नुकसानः इन्हें जब वन्य जीवों द्वारा इन्टेक (आहार के के रूप में ग्रहण) कर लिया जाता है, तो इसके विषाक्त और यांत्रिक, दोनों प्रभाव होते हैं।

जैसे आहार सेवन में कमी होना, दम घुटना, व्यवहार में परिवर्तन और आनुवंशिक परिवर्तन।

पर्यावरण प्रदूषणः माइक्रोप्लास्टिक्स विश्व में सभी जगह मौजूद हैं और प्रकृति में स्वयं नष्ट नहीं होते हैं।

इसलिए, ये पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं और जैविक गतिविधियों में गिरावट का कारण बनते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक को कम करने के लिए किए गए उपाय:

भारत द्वारा किए गए उपायः

 पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 अधिसूचित किए गए हैं।

 खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN: REducing PLAstic from Nature/ रेडूसिंग प्लास्टिक फ्रॉम नेचर) शुरू किया है। 

 पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए LIFE मिशन शुरू किया गया है।

वैश्विक उपायः

 काउंटरमेज़र II प्रोजेक्ट (CounterMEASURE II project) शुरू किया गया है।

 प्लास्टिक प्रदूषण और समुद्री अपशिष्ट पर वैश्विक भागीदारी (GPML) लॉन्च की गई है।

 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने प्लास्टिक पहल शुरू की है।

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