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दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील की प्राचीन चट्टानों पर किए गए शोध से पता चलता है कि एडियाकरन कल्प (Period) के दौरान पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र(Earth’s Magnetic Field) कमजोर हो गया था।

यह कल्प लगभग 635 मिलियन से 541 मिलियन वर्ष पूर्व तक विद्यमान था।

चुंबकीय क्षेत्र के कमजोर पड़ने की यह परिघटना एडियाकरन ऑक्सीजनेशन (ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि) के साथ- साथ घटित हुई मानी जाती है।

इसे शुरुआती जानवरों के उद्भव के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

कमजोर चुंबकीय क्षेत्र के कारण हाइड्रोजन अंतरिक्ष में विमुक्त हो गई।

इससे ऑक्सीजन के साथ आबद्ध होने के लिए हाइड्रोजन के कम अणु शेष बचे।

इस कारण वायुमंडल और महासागरों में अधिक मुक्त ऑक्सीजन उपलब्ध हो गए।

पृथ्वी का चुंबकीय(Earth’s Magnetic Field) क्षेत्र:

Earth's Magnetic Field

पृथ्वी एक विशाल चुंबकीय क्षेत्र से घिरी हुई है, जो चुंबकमंडल (मैग्नेटोस्फीयर) नामक क्षेत्र का निर्माण करता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के बाहरी कोर में जियोडायनेमो प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न हुआ है।

यहां, पृथ्वी के बाह्य कोर परत में धीमी गति से गतिमान पिघले लोहे से विमुक्त संवहनीय ऊर्जा विद्युत और चुंबकीय ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

संवहनीय ऊर्जा ऊष्मा को स्थानांतरित करती है।

चुंबकीय क्षेत्र दो ध्रुव (द्विध्रुव) बनाता है- उत्तरी चुंबकीय ध्रुव और दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव।

इस चुंबकीय क्षेत्र में भी एक सामान्य चुंबक (आमतौर पर छड़ चुंबक) की तरह विपरीत ध्रुव होते हैं।

पृथ्वी के चुंबकमंडल को प्रभावित करने वाले सबसे नाटकीय परिवर्तन ध्रुव व्युत्क्रमण (pole reversals) हैं।

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र(Earth’s Magnetic Field) का महत्त्व

यह हानिकारक सौर पवनों द्वारा पृथ्वी के वायुमंडल के क्षरण को रोकता है।

यह पृथ्वी को कोरोनल मास इजेक्शन (CME) परिघटना के दौरान उत्सर्जित कण विकिरण और कॉस्मिक किरणों से बचाता है।

CME वास्तव में सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का व्यापक स्तर पर उत्सर्जन है।

कोरोना, सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग है।

यह सूर्य से आने वाले कणों को ध्रुवों की ओर निर्देशित करता है, जहां वे ऑरोरा (ध्रुवीय ज्योति) परिघटना में योगदान करते हैं।

चुंबकीय ध्रुव व्युत्क्रमणः

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने वाले बलों में लगातार बदलाव हो रहे हैं।

इससे चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता में परिवर्तन हो रहा है।

इसके कारण पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी चुंबकीय ध्रुवों की अवस्थिति धीरे-धीरे बदलती है।

यहां तक कि इन ध्रुवों की अवस्थिति प्रत्येक 300,000 वर्षों में पूरी तरह से बदल जाती है।

ध्रुव व्युत्क्रमण के दौरान चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो जाता है, लेकिन पूरी तरह से विलुप्त नहीं होता है।

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