इस यात्रा के दौरान सार्क(SAARC) के महासचिव ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की स्थिति पर चर्चा की।
सार्क 2016 से ही निष्क्रिय अवस्था में है। ज्ञातव्य है कि 19वां सार्क शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में 2016 आयोजित होना था,
परन्तु सीमा-पार आतंकवाद संबंधी चिंताओं के कारण इस सम्मेलन को निरस्त कर दिया गया था।
तब से ही यह संगठन सक्रिय नहीं है।
इसके बाद से भारत ने अन्य संगठनों के माध्यम से दक्षिण एशिया के देशों के साथ सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया।
इन संगठनों में बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC/बिम्सटेक); बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) आदि शामिल हैं।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क / SAARC या दक्षेस) के बारे में:
स्थापनाः इसे 1985 में ढाका में सार्क चार्टर के माध्यम से स्थापित किया गया था।
सदस्य देशः भारत, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
सचिवालयः काठमांडू।
सार्क में सभी स्तरों पर निर्णय सर्वसम्मति के आधार पर लिए जाते हैं।
द्विपक्षीय और विवादास्पद मुद्दों को इसके विचार-विमर्श से बाहर रखा गया है।
भारत के लिए सार्क(SAARC) का महत्त्व:
यह भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति का केंद्रीय स्तंभ है।यह क्षेत्र के साझा मुद्दों से निपटने के लिए मंच प्रदान करता है।
यह दक्षिण एशियाई क्षेत्र के आर्थिक एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण मंच है।
सार्क की विफलता के लिए उत्तरदायी कारण:
भारत और अन्य सदस्य देशों के बीच अर्थव्यवस्था, भौगोलिक आकार इत्यादि के आधार पर विषमता मौजूद है।
भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद सार्क के प्रभावी कामकाज में बाधा डालते हैं।
सार्क के पास विवादों को सुलझाने या विवादों में मध्यस्थता करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
सार्क की उपलब्धियां:
सीमा शुल्क कम करने के लिए दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा / SAFTA) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली), सार्क इंटरनेशनल कॉलेज (बांग्लादेश) जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई है।
सदस्य देशों के कल्याण हेतु सार्क विकास कोष की स्थापना की गई है।