Mon. Dec 23rd, 2024

• हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने हिमाचल प्रदेश सरकार को बाल देखभाल अवकाश (CCL) पर अपनी नीतियों की समीक्षा करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने राज्य को कामकाजी माताओं (विशेषकर विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की माताओं) से संबंधित CCL पर उसकी नीतियों की समीक्षा करने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (CCL) से जुड़े मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

• कोर्ट ने कहा कि एक कामकाजी माता का नियोक्ता (Employer) होने के नाते राज्य सरकार सेवारत महिला की घरेलू जिम्मेदारियों से अनभिज्ञ नहीं रह सकती है।

• कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी संविधान के अनुच्छेद 15 द्वारा गारंटीकृत एक संवैधानिक अधिकार है।

• अनुच्छेद 15 में प्रावधान किया गया है कि राज्य केवल

धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।

• प्रसव के दौरान दिए गए मातृत्व हितलाभ पर्याप्त नहीं हैं

और संभवतः ये बाल देखभाल अवकाश की अवधारणा से अलग हैं।

बाल देखभाल अवकाश (CCL) के बारे में:

CCL जरूरी हैं

• केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियमावली, 1972 के नियम 43-C में,

18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों वाली महिला कर्मचारियों को अपने बच्चों की देखभाल के लिए संपूर्ण सेवा वर्ष’ में 730 दिन के CCL का प्रावधान किया गया है।

उल्लेखनीय है कि दिव्यांग बच्चे के मामले में कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

• इस अवकाश का उपयोग बच्चे की किसी भी जरूरत जैसे बच्चे की परीक्षा या,

बच्चे की बीमारी के दौरान उसकी देखभाल के लिए किया जा सकता है।

• यह सुविधा केवल दो बच्चों तक ही उपलब्ध होगी।

• हिमाचल प्रदेश राज्य ने CCL के इन प्रावधानों को नहीं अपनाया है।

मातृत्व हितलाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के बारे में:

• यह महिला कर्मियों के लिए 26 सप्ताह के सवैतनिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान करता है।

• इन 26 सप्ताहों में से, अधिकतम 8 सप्ताह का अवकाश,

प्रसव की अपेक्षित तारीख से पहले लिया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *