• स्विस जांच संस्था “पब्लिक आई” और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क ने इस(Nestle’s baby foods) तथ्य का खुलासा किया है।
• विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, बचपन में ही शुगर की अधिक मात्रा के सेवन से इसकी आदत हो जाती है।
इससे मोटापा और अन्य क्रोनिक (दीर्घकालिक) बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
• शुगर की मात्रा से संबंधित यह दोहरा मानदंड नैतिकता से जुड़ी चिंताओं को बढ़ाता है। साथ ही, यह नैतिकता और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवसाय करने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।
नैतिकता से जुड़ी चिंताएं(Nestle’s baby foods):
• विश्वासघातः
घटिया उत्पाद बेचना उपभोक्ताओं के साथ विश्वासघात है।
• स्वास्थ्य पर प्रभावः
उपर्युक्त उदाहरण यह भी दर्शाता है कि कंपनियां अधिकतम लाभ कमाने के लिए विकासशील देशों के लोगों के स्वास्थ्य की भी उपेक्षा कर सकती हैं।
• निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघनः
ऐसा इसलिए, क्योंकि कंपनी अमीर और गरीब देशों के ग्राहकों के बीच भेदभाव कर रही है।
• पारदर्शिता और जवाबदेही का अभावः
कंपनी ने अपने उत्पाद में पदार्थों की मात्रा और इनके नकारात्मक प्रभावों के बारे में जानकारी को छुपाया है।
खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नियम और कानून:
• कोडेक्स एलिमेंटेरियसः यह खाद्य संरक्षा (फूड सेफ्टी) और गुणवत्ता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों, दिशा-निर्देशों तथा “अभ्यास संहिताओं” का संग्रह है।
इसे कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग ने विकसित किया है।
यह आयोग खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की संयुक्त संस्था है।
• भारत का खाद्य संरक्षा और मानक अधिनियम 2006: इसमें खाद्य संरक्षा की परिभाषा दी गई है।
• इसी कानून के तहत भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना की गई है।
यह प्राधिकरण भारत में खाद्य संरक्षा और गुणवत्ता के लिए शीर्ष विनियामक संस्था है।