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IIT-दिल्ली ने भारत में मृदा अपरदन(soil erosion) की भू-स्थानिक मॉडलिंग और मैपिंग’ शीर्षक से अध्ययन प्रकाशित किया है

• यह अध्ययन भारत में मृदा अपरदन(soil erosion) और सेडीमेंट यील्ड मैपिंग का राष्ट्रीय स्तरीय व्यापक मूल्यांकन प्रदान करता है।

इसके अलावा, इसमें मृदा संरक्षण रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने का विवरण भी दिया गया है।

• भू-सतह की ऊपरी मृदा परत या आवरण (Topsoil) के त्वरित क्षरण को मृदा अपरदन(soil erosion) कहा जाता है।

यह अपरदन बहते जल, वायु और कृषि जुताई जैसी प्रक्रियाओं के कारण होता है।

• मृदा अपरदन की प्रक्रिया सभी प्रकार की जलवायु स्थितियों में घटित होती है, लेकिन मानव की असंधारणीय गतिविधियों की वजह से अपरदनात्मक प्रक्रिया में तेजी आ गई है।

असंधारणीय गतिविधियों में गहन कृषि, वनों की कटाई, भूमि उपयोग में अव्यवस्थित बदलाव आदि शामिल हैं।

अध्ययन(soil erosion) के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

• मृदा अपरदन का स्तरः

भारत में मृदा क्षरण या अपरदन की दर प्रतिवर्ष 21 टन प्रति हेक्टेयर है।

• भारत में लगभग 78 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि की औसत उत्पादकता में 8% की गिरावट दर्ज की गई है।

• अधिक मृदा अपरदन वाले हॉटस्पॉटः

ब्रह्मपुल बेसिन को मृदा अपरदन का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा है। इसके बाद महानदी और गंगा बेसिन का स्थान है।

• देश के लगभग 5% भौगोलिक क्षेन को विनाशकारी अपरदन श्रेणी (Catastrophic erosion category) के तहत रखा गया है।

इन क्षेलों में असम के अधिक हिस्से, मेघालय के कुछ हिस्से और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र शामिल हैं।

विनाशकारी अपरदन श्रेणी वाले क्षेन में गहन अवनालिका अपरदन (Deep gullies) की प्रक्रिया देखी जाती है।

इनसे सड़कों, बाड़ और यहां तक कि इमारतों को भी नुकसान पहुंचने की आशंका बनी रहती है।

• अपरदन के कारकः

तेज और अधिक वर्षा तथा स्थानीय स्थलाकृतियां संयुक्त रूप से मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारक हैं।

मृदा अपरदन(soil erosion) के कारण उत्पन्न चिंताएं:

• मृदा अपरदन से मृदा की उपजाऊ ऊपरी परत का क्षरण होता है,

• जल निकायों में तलछट जमा हो जाता है,

• बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं,

• मरुस्थलीकरण बढ़ता जाता है।

भारत में मृदा अपरदन की समस्या के समाधान हेतु पहले:

• एकीकृत जल संभर (वाटरशेड) प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP):

इसका उद्देश्य मृदा, वनस्पति आवरण और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों में हो रहे क्षरण को रोककर उनकी पहले वाली स्थिति को पुनर्बहाल करना तथा उनका उपयोग, संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन स्थापित करना है।

• एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (IWDP):

इस कार्यक्रम का उद्देश्य बंजर और निम्नीकृत भूमि की उत्पादकता में सुधार करना है।

• संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD) के तहत बॉन चैलेंजः

इसके तहत भारत ने 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और निर्वनीकरण वाली भूमि को पुनर्बहाल करने का लक्ष्य रखा है।

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